बेटा हो या बेटी हो,
माँ के प्यारे बच्चे दो,
दोनों ही माँ का अंश हैं,
फिर क्यूँ लोग करते बेटी को अपभ्रंश हैं
पूछों जरा उस माँ के दिल से,
जिसने मार दिया अपने ही हाथों अपने गर्भ को,
समाज क्यूँ मजबूर करता है,
एक माँ को ये करने को,
कब हम इस समाज को जागरूक कर पायेंगे,
कब इस प्रथा को जड़ से मिटा पायेंगे ,
एक सवाल जरा पूछो अपने आप से ,
कब तक यूँ ही डर के समाज का साथ निभाएंगे.
श्वेता