......................तुम मिले मुझे बहुत देर बाद तुम्हारी आखों में प्यार की वो गर्मी वो रूहानी एहसास मैंने देखा जो शायद किसी और की आखों में नहीं देख पाती.तुम मिले तो मुझे ऐसा लगा की इस दुनिया में मेरे लिए भी कुछ है .तुम मिले तो मुझे लगा ये ज़िन्दगी जीने के लिए है पराई दुनिया के वीराने जंगल में ज़िन्दगी की एक नन्ही सी किरण के रूप में तुम मुझे दिखाई दिए लेकिन.............. मेरे और तुम्हारे बीच में हजारों मीलों का फासला था . फिर तुम अपनी सीमाओं में बंधे थे और मैं अपनी हदों में . हम अपने अपने जिस्मों को बाज़ार में नीलाम करने के बाद , एक दुसरे को रूह की आखों से , हसरत भरी नज़रों से देखते रहते थे . जिस्म हमारे अपने नहीं रहे थे लेकिन............................ लेकिन रूह ....... रूह तो अपनी थी . रूह जिसे कैद नहीं किया जा सकता , जिसे न तो ख़रीदा - बेचा जा सकता है , जो न रिश्तों की कैद में बंधती है , और न जिसका सौदा किया जा सकता है .दुनिया में हर चीज़ का सौदा है लेकिन रूह एक ऐसी चीज़ है जिसे खरीदने की ताकत शायद खुदा में भी नहीं. तुम मिले तो मुझे ऐसा लगा की मेरी रूह का एक टुकड़ा जो सदियों से बिछुड़ा था , मुझे मिल गया है .. तुम्हारी आखों में ज़िन्दगी थी , खुद का दीदार था, इसीलिए तो मैं तुम्हारी इबादत करने लगी. इस पवित्र और मुक़द्दस एहसास को कोई नाम दूंगी तो तौहीन होगी , इसे रिश्ता कहना भी गुनाह है , क्यूंकि दुनिया के तमाम रिश्ते खुदगर्जी पे आधारित होते हैं . मैंने तुम्हारी इबादत की ............... तुम्हारी एक झलक पाने के लिए रात -रात भर जाग के दुआएं मांगी . वक़्त के ऐसे मोड़ पे तुम मिले थे , जहाँ से पीछे लौट पाना न तुम्हारे बस में था, न मेरे . तुम मुझे इतनी देर बाद क्यूँ मिले? ????????????????? ये सवाल जब अपने आप से पूछती हूँ , तो जवाब मिलता है, ये दुनिया मेरे लिए तो नहीं थी , फिर अचानक ये तमन्ना कैसी ??????????????? अगर तुम मुझे मिलते तो तुम्हारे उपर ज़ुल्म होता , क्यूंकि मैं हमेशा तुम्हे अपनी पलकों के साए में छुपाकर रखती और तुम मेरी आखों के साए में कैद होकर रह जाते . तुम मुझे मिलते तो मंदिर में सजाकर तुम्हारी पूजा करती और तुम इंसान बनने के लिए तरस जाते . भगवान् या खुदा को इबादतगाहों में कैद करके इंसान उसके साथ जो ज़ुल्म करता है , शायद वैसा ही ज़ुल्म मैं तुम्हारे साथ करती .. और सबसे बड़ी बात तो यह की तुम्हारे प्यार की गर्मी और तुम्हारी मुक़द्दस नजदीकी को सह पाना मेरे बस की बात नहीं थी ... इस दुनिया के सबसे बड़े भिखारी को इस दुनिया की सबसे बड़ी दौलत दे देना बेहद खतरनाक हो सकता है,,... है न .............. ख़ुशी के मारे या तो वो मर जायेगा या पागल हो जायेगा मेरे लिए यही क्या कम है की बहुत दूर से ही सही........ तुम्हारी एक झलक देख पाती हूँ .... यह नन्ही सी ख़ुशी ही मेरी ज़िन्दगी में मर्स्रतों के बेपनाह फूल खिला देती है . बस,,,,............ एक इल्तिजा है तुमसे मुझे कभी परायेपन से न देखना और अपनी एक झलक से मुझे कभी महरूम न करना .. इस दुनिया में अगर मेरे लिए कुछ है तोह वह तुम्हारी एक झलक ही है . तुम्हारी इबादत करना अब मेरी ज़िन्दगी का मकसद है .यह मेरा हक है ..........और इस हक को कोई मुझसे नहीं छीन सकता .................................... खुदा भी नहीं
श्वेता
श्वेता
bahaut bahaut bahaut khubbb...........kitni khubsurati se ek ladki ke dil ka haal bayan iya hai tumne Shweta......behad khubsurat behad sanjida......well blog likhna shuru karne ki.....badhayia.....God bless U dear
ReplyDeletethanx di thanx alot main to soch rahi thi pata nahin maine kya likha hai kisi ko pasand aayga bhi ya nahin but really thanx a lot for encourage me
ReplyDeletebahut khoobsoorat write up hai....shwetaji...keep it up...फिर तुम अपनी सीमाओं में बंधे थे और मैं अपनी हदों में . हम अपने अपने जिस्मों को बाज़ार में नीलाम करने के बाद , एक दुसरे को रूह की आखों से , हसरत भरी नज़रों से देखते रहते थे . जिस्म हमारे अपने नहीं रहे थे लेकिन............................ लेकिन रूह ....... रूह तो अपनी थी . रूह जिसे कैद नहीं किया जा सकता , जिसे न तो ख़रीदा - बेचा जा सकता है , जो न रिश्तों की कैद में बंधती है , और न जिसका सौदा किया जा सकता है .दुनिया में हर चीज़ का सौदा है लेकिन रूह एक ऐसी चीज़ है जिसे खरीदने की ताकत शायद खुदा में भी नहीं.
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