Wednesday 4 May 2011

बेटा हो या बेटी हो,
                      माँ के प्यारे  बच्चे दो,
दोनों ही माँ का अंश हैं,
                     फिर क्यूँ लोग करते बेटी को अपभ्रंश हैं
पूछों जरा उस माँ के दिल से,
                     जिसने मार दिया  अपने ही हाथों अपने गर्भ को,
समाज क्यूँ मजबूर करता है,
                         एक माँ को ये करने को,
कब हम इस समाज को जागरूक कर पायेंगे,
                         कब इस प्रथा को जड़ से मिटा पायेंगे ,
एक सवाल जरा पूछो अपने आप से ,
                           कब तक  यूँ ही डर के समाज का साथ निभाएंगे.  
                              




श्वेता

Tuesday 3 May 2011

आकाश में उड़ता परिंदा हूँ,
पिंजरे में न रह पाउँगा .
कैद कर लोगे गर तुम मुझको,
घुट घुट के मर जाऊंगा.
न छीनो मुझसे मेरी आज़ादी,
मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है,
यही उड़ने की आज़ादी तो,
मेरे जीने का सहारा है.


                                            श्वेता


lamha

खूबसूरत लम्हा हूँ ,
किसी की चाहत में पिघल जाऊंगा,
चाहे जो हो अंजाम ,
मैं सिर्फ उसको ही चाहूँगा ,
कहते हैं लोग,
मिट गया है इश्क इस जहाँ से,
मैं खुद मिट कर इश्क का नाम रोशन कर जाऊंगा,
उसकी चाहत में क्या से क्या हो गया देखो ,
खूबसूरत लम्हा था ,
..............बीता हुआ पल बन जाऊंगा .




श्वेता

Monday 2 May 2011

zikra tumhara.............

एक बार  तेरे दीदार का नज़ारा कर लूँ ,
जी में आता है तुझे प्यार दुबारा कर लूँ .
तेरी तमन्ना है, तेरी ख्वाइश है ,तेरी है आरज़ू ,
तुझे न पा सकूँ ,ये बात कैसे गंवारा कर लूँ,
सब तो जीते हैं दिल के सहारे दुनिया में ,
अपने दिल के बिना कैसे मैं गुजारा कर लूँ,
आज उठी है बात महफ़िल में मोहब्बत की ,
दिल ने तुम्हे याद किया ......


थोडा ज़िक्र तुम्हारा कर लूँ..

kuch kahi ankahi baatein: tumhari ek jhalak

kuch kahi ankahi baatein: tumhari ek jhalak: "तुम मिले मुझे बहुत देर बाद तुम्हारी आखों में प्यार की वो गर्मी वो रूहानी एहसास मैंने देखा जो शायद किसी और की आखों में नहीं देख पाती.तुम मिले..."

tumhari ek jhalak

......................तुम मिले मुझे बहुत देर बाद तुम्हारी आखों में प्यार की वो गर्मी वो रूहानी एहसास मैंने देखा जो शायद किसी और की आखों में नहीं देख पाती.तुम मिले तो मुझे ऐसा लगा की इस दुनिया में मेरे लिए भी कुछ है .तुम मिले तो मुझे लगा ये ज़िन्दगी जीने के लिए है  पराई दुनिया के वीराने जंगल में ज़िन्दगी की एक नन्ही सी किरण के रूप में तुम मुझे दिखाई दिए लेकिन.............. मेरे और तुम्हारे बीच में हजारों मीलों का फासला था . फिर तुम अपनी सीमाओं में बंधे थे और मैं अपनी हदों में . हम अपने अपने जिस्मों को बाज़ार में नीलाम करने के बाद , एक दुसरे को रूह की आखों से , हसरत भरी नज़रों से देखते रहते थे . जिस्म हमारे अपने नहीं रहे थे लेकिन............................ लेकिन रूह ....... रूह तो अपनी थी . रूह जिसे कैद नहीं किया जा सकता , जिसे न तो ख़रीदा - बेचा जा सकता है  , जो न रिश्तों की कैद में बंधती है , और न जिसका सौदा किया जा सकता है .दुनिया में हर चीज़ का सौदा है लेकिन रूह एक ऐसी चीज़ है जिसे खरीदने की ताकत शायद खुदा में भी नहीं. तुम मिले तो मुझे ऐसा लगा  की मेरी रूह का एक टुकड़ा जो सदियों से बिछुड़ा था , मुझे मिल गया है .. तुम्हारी आखों में ज़िन्दगी थी , खुद का दीदार था, इसीलिए तो मैं तुम्हारी इबादत करने लगी. इस पवित्र और मुक़द्दस एहसास को कोई नाम दूंगी तो तौहीन होगी , इसे रिश्ता कहना भी गुनाह है , क्यूंकि दुनिया के तमाम रिश्ते खुदगर्जी पे आधारित होते हैं . मैंने तुम्हारी इबादत की  ............... तुम्हारी एक झलक पाने के लिए रात -रात भर जाग के दुआएं मांगी . वक़्त के ऐसे मोड़ पे तुम मिले थे , जहाँ से पीछे लौट पाना न तुम्हारे बस में था, न मेरे  . तुम मुझे इतनी देर बाद क्यूँ मिले? ????????????????? ये सवाल जब अपने आप से पूछती हूँ , तो जवाब मिलता है, ये दुनिया मेरे लिए तो नहीं थी , फिर अचानक ये तमन्ना कैसी ??????????????? अगर तुम मुझे मिलते तो तुम्हारे उपर ज़ुल्म होता  , क्यूंकि मैं हमेशा तुम्हे अपनी पलकों के साए में छुपाकर रखती और तुम मेरी आखों के साए में कैद होकर रह जाते . तुम मुझे मिलते तो मंदिर में सजाकर तुम्हारी पूजा करती और तुम इंसान बनने के लिए तरस जाते . भगवान् या खुदा को इबादतगाहों में कैद करके इंसान उसके साथ जो ज़ुल्म करता है , शायद वैसा ही ज़ुल्म मैं तुम्हारे साथ करती .. और सबसे बड़ी बात तो यह की तुम्हारे  प्यार की गर्मी और तुम्हारी मुक़द्दस नजदीकी को सह पाना मेरे बस की बात नहीं थी ... इस दुनिया के सबसे बड़े भिखारी को इस दुनिया की सबसे बड़ी दौलत दे देना बेहद खतरनाक हो सकता है,,... है न .............. ख़ुशी के मारे या तो वो मर जायेगा या पागल हो जायेगा  मेरे लिए यही क्या कम है की बहुत दूर से ही सही........ तुम्हारी एक झलक देख पाती हूँ .... यह नन्ही सी ख़ुशी ही मेरी ज़िन्दगी में मर्स्रतों के बेपनाह फूल  खिला देती है . बस,,,,............ एक इल्तिजा है तुमसे मुझे कभी परायेपन से न देखना और अपनी एक झलक से मुझे कभी महरूम न करना .. इस दुनिया में अगर मेरे लिए कुछ है तोह वह तुम्हारी एक झलक ही है . तुम्हारी इबादत करना अब मेरी ज़िन्दगी का मकसद है .यह मेरा हक है ..........और इस हक को कोई मुझसे नहीं छीन सकता .................................... खुदा भी नहीं


श्वेता